बालू का जर्रा कभी तो चमकेगा आसमान मे !

जिस प्रकार रेगिस्तान चारांे तरफ फैला हुआ है जहां बालू की कोई गिनती नही रेगिस्तान जिसका कोई मूल्य नही है। लेकिन यदि यही बालू अगर शहर मे आ जाये यही कितना महंगा हो जाता है। इसका मूल्य बढ़ जाता है उसी प्रकार आज हमारे समाज में वे छोटे नन्हें बच्चे जिनका मूल्य शायद बढ़ने वाला है अभी इनकी कीमत का अंदाजा हमें नही पता। आज इस देश के बच्चे एक एैसे गिरफ्त मे फंसे हुए है और वह गिरफत है बालश्रम। जी हां दोस्तों आज हम सभी को यह सोचना होगा जो हम चाह कर भी नही सोच सकते। आज हम कहीं भी चाय के ठेलो पर सडक के किनारे बने ढाबों पर आसानी से उन बच्चे के हांथो से कप का प्याला तो ले लेते है और बडी आसानी से चाय पी जाते है क्या कभी भी हमने उनके हाथो से वह प्याला लेते वक्त यह कभी कुछ सोचा..शयद नहीं। क्या हमारी नजर उनके ऊपर कभी ठहरी। आखिर क्यों ? आज कंही भी कचरे के ढ़ेरों में शडक के कीनारे नंगे बदन पैर खाली पीठ पर बोरा लटकाये आसानी से दिख जायेंगे इनकी बेबसी क्या है ये खुद नही जानते शायद दो वक्त की रोटी के लिये। मनुष्य का मन आज इतना कठोर हो चुका ।की वह यह जानना भी नही चाहता।आज तो लोग कुत्ते पालने मे अपनी शान समझते है। एक आदमी के खाने से ज्यादा खर्च आज कुत्ते के बिस्कीट मे लगाए जाते है। आखीर यह कब तक होगा यह सभी वर्ग के लोगों को सोचना होगा । और अपनी सोंच के सांथ-सांथ पुरे समाज का सोंच बदलना होगा । तभी तो यह बालू का जर्रा कभी आसमान मे चमकता सितारा नजर आयेगा ।

Comments

  1. swagat ho aapka is blog mai, aapne sachai ko samne rakh diya hai, sach mai agar sabhi in baccho k bhavisya ko dekhe aur samjhe to inke liye ham sab ko tyar hons padega.

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