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जानना क्यों नहीं चाहते

वह सुनसान रास्ता, रात का समय झिंगुर की आती आवाज़ मन में थोड़ा डर, समय था आधी रात का जहां नज़रों को आगे दौडाने पर भी कोई नहीं दिखता, दिखते तो सिर्फ गली में दो-चार श्वान, जिनका भयावह आवाज सिर्फ कानो में आते एक के भौंकने के बाद कुद्द दूर-दूसरे कुत्ते की आहट मानो ऐसा लगता कि ये कुत्ते रात में संत्री हो, जो एक दूसरेे को आगाह कर रहे हो। अभी रात काटने में 4 घंटे बचे थे, इन्तजार था तो सिर्फ सुबह का इस रात को काटते समय हम चार दोस्त बैठे थे, एक अनजान गांव मंे जहां हम गये थे अपने पढ़ाई के विषय मंे शोध करने शोध हमारे विषय की विशेषता थी क्योंकि हम मीडिया के स्टुडेंट थे। वैसे यह किसी शोध के विषय के बारे मे मैं लेख नही लिख रहा हूं लेख बस उस गांव के ऊपर है जहां हम गये हुए थेे। रात का पल तो हमने आपस में बात कर के काट ली सभी अपने जीवन में अभी तक घटे घटनाओं के बारे मे बात कर रहे थे कई ने मजाक किया किसी के बातों के लेकर एक-दूसरे को खुब चिढ़ाया, धीरे-धीरे रात गुज़र गई हमें उस रात नींद भी नही आ रही थी वैसे विधाता का शुक्रिया की उस रात नींद नही आई अन्यथा उस पल को मैं कैसे याद रख पाता। सवेरा हुआ आंख-मुंह धोए

जीवन एक अनमोल तोहफा

जीवन जो एक अनमोल तोहफा है मनुष्य के लिए जो न जाने कितने तप करके एक मानव को प्राप्त होता है यह जीवन उस विधाता के द्वारा दिया हुआ उपहार है, हमारे लिए । इसे कैसे जिया जाये यह निर्भर करता है हमारे उपर । सृष्टि जो जीवन रूपि नईया पर सवार है । यह नईया जो इस जीवन को आर पार लगाती है। यह नईया सागर जैसी गहरी सोंच व संघर्ष के ऊपर तैर कर उस पार जाने का रास्ता तय करती है इस सागर को पार करते समय जीवन में कितनी तुफान बाढ़ का सामना करना पडता है और यदि मनुष्य इस जीवन को संघर्ष के साथ अगर पूरा कर लेता है तो वह जीवन जीने की जो कला होती है उसे सीख लेता है और इन संघर्ष रूपी जीवन एक खुशनुमा शाम में तब्दील हो जाता है। वह शाम जो एक थके हुए आदमी को सुकुन देता है। यह वही शाम है जो इस जहां को शायद शीतलता प्रदान करती रहती है। दिन भर की धूप, धूल-धक्कड़, चिंता-परेशानी को ऐसा धूमिल कर देता है, जिसके आगे सोचने के लिए कुछ नहीं होता। जिस प्रकार एक सुनहरे सुबह का अनमोल तोहफा इस संसार को हर रोज प्राप्त होता है, वह तोहफा है लाली किरणों के साथ पहाड़ों की ओट से निकलता सूरज। यह कुदरत का करिश्मा ही तो है जो हर रोज सुबह की नई आग

बालू का जर्रा कभी तो चमकेगा आसमान मे !

जिस प्रकार रेगिस्तान चारांे तरफ फैला हुआ है जहां बालू की कोई गिनती नही रेगिस्तान जिसका कोई मूल्य नही है। लेकिन यदि यही बालू अगर शहर मे आ जाये यही कितना महंगा हो जाता है। इसका मूल्य बढ़ जाता है उसी प्रकार आज हमारे समाज में वे छोटे नन्हें बच्चे जिनका मूल्य शायद बढ़ने वाला है अभी इनकी कीमत का अंदाजा हमें नही पता। आज इस देश के बच्चे एक एैसे गिरफ्त मे फंसे हुए है और वह गिरफत है बालश्रम। जी हां दोस्तों आज हम सभी को यह सोचना होगा जो हम चाह कर भी नही सोच सकते। आज हम कहीं भी चाय के ठेलो पर सडक के किनारे बने ढाबों पर आसानी से उन बच्चे के हांथो से कप का प्याला तो ले लेते है और बडी आसानी से चाय पी जाते है क्या कभी भी हमने उनके हाथो से वह प्याला लेते वक्त यह कभी कुछ सोचा..शयद नहीं। क्या हमारी नजर उनके ऊपर कभी ठहरी। आखिर क्यों ? आज कंही भी कचरे के ढ़ेरों में शडक के कीनारे नंगे बदन पैर खाली पीठ पर बोरा लटकाये आसानी से दिख जायेंगे इनकी बेबसी क्या है ये खुद नही जानते शायद दो वक्त की रोटी के लिये। मनुष्य का मन आज इतना कठोर हो चुका ।की वह यह जानना भी नही चाहता।आज तो लोग कुत्ते पालने मे अपनी शान समझते है। एक